क्या होता हैं पोस्ट प्रोडक्शन, आख़िर क्यों होता हैं फ़िल्म मेकिंग का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट -3

ravi

नमस्कार दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत हैं हमारे इस ब्लॉग पे आज हम बात करने वाले हैं पोस्ट प्रोडक्शन( Post Production) के बारे में। इससे पहले फ़िल्म मेकिंग के तीन पार्ट में से दो पार्ट प्री प्रोडक्शन और प्रोडूक्शन के बारे में हम जान चुके हैं। तो आज सबसे अहम पार्ट पोस्ट प्रोडक्शन के बारे में पूरे विस्तार से जानेगे इस पोस्ट में।

पोस्ट प्रोडक्शन (Post Production)

जैसा कि ऐसे नाम से प्रतीत होता हैं पोस्ट मतलब की बाद में। यानी कि फ़िल्म मेकिंग का सबसे अंतिम चरण और अहम हिस्सा माना जाता हैं। कोई भी फ़िल्म हो,या कोई प्रोजेक्ट ये फाइनल तभी होता हैं जब इसका पोस्ट कम्पलीट होता हैं। इसके अंतर्गत बहुत सारे काम किये जाते हैं।

01. एडिटिंग       (Editing)

02. डबिंग          (Dubbing )

03. डी आई        (D I)

04. वीएफएक्स  ( V F X)

05. सेंसर           (Censor)

06. पब्लिसिटी  ( Publicity)

07. यूएफओ डाउनलोड ( UFO Download)

Editing – ( संपादन )

कोई भी फ़िल्म या प्रोजेक्ट तबतक देखने लायक नही होता हैं जबतक की उसकी एडिटिंग कंपलीट नही हो जाती हैं। एडिटिंग का मतलब संपादन होता हैं।  इसके अंतर्गत शूटिंग किये हुए फ़ुटेज ( Material) को एडिट किया जता हैं। यानी कि शूटिंग के दौरान जो गलतियां होती हैं उसको काट कर हटा दिया जाता हैं और जो सही शॉट्स होता हैं उसको कहानी के अनुसार जोड़ दिया जाता हैं।

एडिटिंग का काम एडिटर करता हैं जो डायरेक्टर के देखरेख में काम करता हैं। एडिटर अपने हिसाब से फर्स्ट कट करता हैं यानी कि रफ़ एडिट करता हैं लेक़िन फाइनल डायरेक्टर के द्वारा किया जाता हैं।

हालांकि अब सबकुछ डिजिटल हो गया हैं इसलिए एडिटिंग का काम बहुत ही आसान हो गया हैं। अब बस शूटिंग के बाद आप डायरेक्ट एडिटिंग स्टार्ट कर सकते हो। पहले नेगटिव पे शूटिंग होती थी शूटिंग के बाद टेलिसिने किया जाता था उसके बाद एडिटिंग सिस्टम में फ़ुटेज को डालके कन्वर्ट करना होता था। उसके बाद एडिटिंग की जाती थी।

Dubbing ( डबिंग )

एडिटिंग के बाद डबिंग का काम शुरू होता हैं। इसमें जो कलाकार होते हैं वो स्टूडियो में आकर अपनी आवाज़ देते हैं इसी को डबिंग कहते हैं। क्योंकि शूटिंग के दौरान जो आवाज़े होती हैं उसमें बहुत नॉइज़ होता जिसके कारण शूटिंग के दैरान बोले गए संवाद को फ़िर से स्टूडियो में रिकॉर्ड किया जाता हैं।

आवाज़ रिकॉर्ड होने के बाद जो रिकॉर्डिस्ट होता हैं वो आवाज़ को सिंक करता हैं। मतलब की लिप्स के अनुसार आवाज़ को सिंक करता हैं। उसके बाद मिक्सिंग, फौली, 5.1 और 7.1 मिक्स, और भी छोटे छोटे कई काम किया जाता हैं।

DI ( डी आई- Colour Grading )

डीआई का मतलब होता हैं कलर ग्रेडिंग, यानी कि फ़ुटेज को अपग्रेड करना होता हैं। एक आसान भाषा ये हैं कि कलर करेक्शन ( Colour Correction) लेक़िन डीआई के लिए अलग सॉफ्टवेयर जैसे- Resolve , Base lite जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता हैं। डीआई के बाद जो फ़ुटेज होता हैं वो काफ़ी अच्छा लगता हैं देखने में।

आज आप कोई भी फ़िल्म या प्रोग्राम बनाओ आप बिना डीआई के कोई भी नही लगा। ये फ़िल्म के क्वालिटी को बहुत ही बढ़ा देता हैं, बिना डीआई के आपको वो क्वालिटी नही मिलेगी। इसलिए ये एक अहम पार्ट हैं पोस्ट प्रोडक्शन का।

VFX ( वीएफएक्स )

इसका मतलब होता हैं विज़ुअल इफेक्ट्स। जब भी आप कोई फ़िल्म देखते हो तो बहुत सारे सीन ऐसे होते हैं जिसमें हीरो कुछ ऐसा करता हैं जो कि एक आम इंसान के लिए नामुमकिन होता हैं। वो सारे काम VFX के द्वारा किया जाता हैं। हालांकि ये काफ़ी महंगा होता हैं। इसके ज़रिए आप कुछ भी दिखा सकते हो।

सेंसर ( Censor)

इसके बाद किसी भी ख़ासकर अगर फ़िल्म हैं तो उसके लिए सेंसर ज़रूरी होता हैं। बिना सेंसर के आप फ़िल्म रिलीज़ नही कर सकते हैं। सेंसर में CBFC के टीम के द्वारा फ़िल्म को देखा जाता हैं अगर उनको कुछ भी ग़लत लगता हैं तो उसको फ़िल्म से हटाने के लिए बोलते हैं।

अगर आप नही हटाते हो तो आपको A Certificate दिया जाता हैं। जिसका मतलब होता हैं Adult यानी कि इस फ़िल्म को केवल 18 साल से ऊपर के लोग ही देख सकते हैं। वही अगर फ़िल्म में ऐसा कुछ भी नही हैं जो गलत हैं सेंसर बोर्ड के नज़र में तो फ़िर आपको U- Universal दिया जाता हैं जिसका मतलब हैं उस फ़िल्म को बच्चे से लेकर हर उम्र तक के लोग देख सकते हैं।

वैसे सेंसर बोर्ड का अपना फ़ीस हैं जो फ़िल्म के लेंथ ( लंबाई) के अनुसार होता हैं लेक़िन अमूमन एक फ़िल्म के सेंसर में लगभग 60 हज़ार से 1 लाख तक का खर्च होता हैं जिसमे एजेंट का फीस, फ़िल्म ट्रायल का फ़ीस भी जुड़े होते हैं।

Publicity ( पब्लिसिटी )

किसी भी प्रोजेक्ट को बनाने के बाद आपको लोगों तक पहुचाना होता हैं तभी लोग थिएटर तक आते हैं। इस काम के लिए PRO ( Public Relation Office ) जगह जगह जैसे पेपर, मैगज़ीन, और टीवी दोनों प्रिंट, और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनो जगह पहुचता हैं ताकि लोग फ़िल्म देखने थियेटर तक आ सके।

फ़िल्म बनाना बहुत ही आसान होता हैं लेक़िन उसको पब्लिक तक पहुचाना और बेचना बहुत ही कठिन काम होता हैं। इसलिए PRO इस काम को बखूबी अंजाम देता हैं

UFO Uploading ( यूएफओ )

जब सब कुछ तैयार हो जाता हैं तो फ़िल्म को UFO ( Universal Flying Object ) पर अपलोड किया जाता हैं तब जाके फ़िल्म एक साथ कई शहरों में रिलीज़ किया जाता हैं। इसमें कई सारी कंपनियां हैं तो UFO के जैसा सर्विस देती हैं। 

Note –

वैसे तो फ़िल्म मेकिंग में इन स्टेपस के अलावा भी बहुत सारे काम किये जाते हैं लेक़िन ऊपर दिए गए मुख्य काम होते हैं।

सबसे ख़ास बात जब भी आप कोई भी रीज़नल या हिंदी फ़िल्म बनाते हो तो आपको बहुत ही सतर्क और प्रॉपर जानकारी लेके ही करना चाहिए नही तो आपको लॉस होने का चांस बहुत ज़्यादा रहता हैं।

तो आज इस पोस्ट में हमने बात किया कि किस तरह हम फ़िल्म मेकिंग करते हैं और पोस्ट प्रोडूक्शन में क्या क्या काम होता हैं। उम्मीद करता हु आपको पोस्ट से कुछ न कुछ सीखने को मिला होगा।

इस पोस्ट से संबंधित कोई सुझाव या जानकारी हो तो ज़रूर कमेंट करें या हमें आप Instagran , Facebook और Youtube पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं।

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