श्रीकांत डायरेक्टर तुषार हीरानंदानी की एक बेहतरीन फ़िल्म हैं फ़िल्म कैसी बनानी चाहिए वाकई इस फ़िल्म को देखके आप बख़ूबी समझ सकते हैं। आजकल जहाँ एक ओर केवल एनिमल, सालार जैसी एक्शन फिल्में बनाई जाती हैं वही श्रीकांत लीक से हटकर एक बेहतरीन बॉयोपिक फ़िल्म हैं जो हमें जीवन में कभी भी हार नही मानने की प्रेरणा देती हैं।
वही इस फ़िल्म से हमें सिख मिलती हैं कि अगर हमारे अंदर जज़्बा हो, तो मुश्किलें ख़ुद हमारे रास्ते से हट जाती हैं। परिस्थितियाँ हमारा साथ देने लगती हैं। बस आपके अंदर कुछ पाने की ज़िद होनी चाहिए।
श्रीकांत की झकझोर देनेवाली कहानी
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो ये आंध्रप्रदेश से रिलेट करती हैं । आंध्रा में एक परिवार जो मछलीपट्टनम में रहता हैं घर की स्थिति बहुत ही दयनीय हैं । खेती करके गुज़र बसर करने वाला इंसान अपने बेटे की क्रिकेटर श्रीकांत की तरह ही अपने बेटे को बनाना चाहता हैं।
लेक़िन उनकी खुशी उस समय दुख में बदल जाती हैं जब उसे पता चलता हैं कि उसका बेटा दृष्टिहीन हैं यानी कि वो देख नही सकता हैं। पिता अपने बेटे के भविष्य को लेकर चिंतित रहता हैं और वो कैसे भविष्य में अपने जीवन को व्यतीत कर पायेगा इस को लेकर वो परेशान हो जाता हैं।
उसके बाद वो फ़ैसला करता हैं की अपने बेटे को वो इस परेशानी से बचाने के लिए अभी ही उसे ज़मीन में जिंदा गाड़ देगा, लेक़िन वो ऐसा कर नहीं पता हैं। यही से लड़के श्रीकांत राजकुमार राव की संघर्ष की कहानी शुरू होती हैं।
श्रीकांत अंधा होने के बाबजूद भी वो अपने स्कूल में टॉप कर जाता हैं उसके बाद भी अंधा होने के कारण साइंस में दाखिला नही मिलता हैं । सिलसिला यही ख़त्म नही होता हैं 12वी में भी टॉप करने के बाद भी उसे आईआईटी में दाखिला नही मिलता हैं।
लेक़िन कहते हैं न टैलेंट की क़दर हर कोई नही कर पाता हैं हीरे की क़दर करना जौहरी ही जनता हैं यही होता हैं श्रीकांत के साथ। यहाँ एड्मिसन नही मिलता हैं लेक़िन दूसरी ओर अमेरिका में एमआईटी उसे स्वागत करने के लिए तैयार रहता हैं।
उसके इस सफ़र में उसका साथ देती हैं उसकी एक टीचर जिसका किरदार ज्योतिका ने निभाया हैं। वही श्रीकांत अमेरिका से वापस आकर हैदराबाद में दृष्टिहीनों के लिए रोजगार देने वाली कंपनी की शुरआत करता हैं। इसमें उसका साथ रवि ( शरद केलकर) देता हैं ।
दूसरी तरफ़ स्वाति अलाया एफ श्रीकांत को अपना प्यार के साथ साथ हर कदम पर उसे साथ देती हैं। जब भी लगता हैं स्वाति हर समय उसको मोटिवेट करती हैं। आगे क्या होता हैं इसके लिए आपको पूरी फ़िल्म देखनी पड़ेगी।
फ़िल्म रिव्यु – श्रीकांत
श्रीकांत फ़िल्म की सबसे बेहतरीन बात हैं कि इस फ़िल्म में आप कही भी आपकी दिलचस्पी को कम नही होने देगी। इसमें एक डायलॉग हैं ” मैं भाग नही सकता, सिर्फ लड़ सकता हु” इस संवाद से ही फ़िल्म की कहानी और मार्मिकता की झलक मि जाती हैं।
फ़िल्म का फर्स्ट हाफ़ जहाँ एक ओर फ़ास्ट हैं वही सेकेंड हाफ़ में कहानी खिंची खिंची लगती हैं। लेक़िन फ़िल्म के लेखक सुमित पुरोहित और जगदीप सिधू ने श्रीकांत के ऊपर रखा हैं वो कैसे अपनी बुद्धि का उपयोग करके विपरीत से विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं।
फ़िल्म में आपको शिक्षा व्यवस्था पर भी कटाक्ष देखने को मिलेगा। इसमें सबसे ख़ास श्रीकांत अपने अंधेपन का दुख नही जश्न मनाते आपको दिखाई देंगे।
फ़िल्म के संगीत भी काफ़ी शुकुन देने वाला हैं ” पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” को सिचुएशन के अनुसार बहुत ही बेहतर तरीक़े से रीक्रिएट किया गया हैं । वही तू मिल गया और तुम्हे आपन मानना गाना भी काफ़ी बेहतरीन हैं।
अभिनय की बात करें तो राजकुमार राव ने अपनी अभिनय प्रतिभा का एक बार फ़िर से लोहा मनवाया हैं इस रोल में शायद ही कोई और इतना सटीक बैठ सकता था। वही ज्योतिका और अलाया एफ ने भी काफ़ी शानदार अभिनय प्रस्तुत किया हैं। साथ ही शारद केलकर ने भी एक दोस्त के रूप में अच्छा अभिनय किया हैं।
टिप्पणी
ओवरऑल अगर फ़िल्म की बात करें तो इस बॉयोपिक फ़िल्म को देखने के बाद आपका नेत्रहीन को देखने और उनके प्रति सोचने का नज़रिया ही बदल जायेगा।
इस फ़िल्म को लेकर आपकी क्या राय हैं कमेंट करके ज़रूर बताये।