क्या होता हैं फ़िल्म प्रोडक्शन, कैसे करें प्रोडक्शन ताकि आपकी फ़िल्म में न हो कोई नुक़सान

ravi

नमस्कार दोस्तों आज इस पोस्ट में बात करेंगे फ़िल्म के प्रोडक्शन कैसे करते हैं इससे पहले हमने बातें किया था कि प्रीप्रोडूक्शन क्या होता हैं और कैसे और किन किन बातों का ख्याल रखना चाहिए। तो आइए जानते हैं प्रोडक्शन के बारे में पूरे विस्तार से।

क्या होता हैं प्रोडूशन ?

किसी भी फ़िल्म, सीरियल या कोई भी प्रोजेक्ट बनाने के लिए तीन फेज़ में काम किया जाता हैं।

01. प्री प्रोडक्शन

02. प्रोडक्शन

03. पोस्ट प्रोडक्शन

इससे पहले पोस्ट में हमने प्री प्रोडक्शन के बारे में पूरे विस्तार से बात किया था।आज बात करते हैं प्रोडक्शन के बारे में। प्रोडक्शन का मतलब हम सब जानते हैं कि उत्पादन करना होता हैं। चाहे वो कोई भी फील्ड हो सकता हैं। ठीक उसी प्रकार फ़िल्म मेकिंग में भी प्रोडूक्श का मतलब होता हैं शूटिंग करना यानी कि उत्पादन करना हैं। जैसा कि हमने पिछले पोस्ट में बात किया था कि प्री प्रोडक्शन क्या होता हैं और उसके अंतर्गत कौन कौन से काम किया हैं जैसे- स्टोरी,कास्टिंग, लोकशन हंटिंग, सांग रिकॉर्डिंग इत्यादि काम प्री प्रोडक्शन में किया जाता हैं।

अब बात करते हैं प्री प्रोडक्शन के बाद आता हैं फेज़ प्रोडक्शन का। प्रोडक्शन में हम किसी भी फ़िल्म या कोई भी प्रोजेक्ट की शूटिंग करते हैं। चाहे वो फ़िल्म, सीरियल, गाना या कुछ भी हो सकता हैं। इसमे हमारा एक टारगेट होता हैं कि एक लिमिटेड समय में शूटिंग कंप्लीट करना होता हैं। ताकि हमारा बजट हमारे बनाये हुए बजट तक सीमित रहे, तभी हम किसी भी प्रोजेक्ट में प्रॉफ़िट बना सकते हैं।z

इसमें हम पूर्व निर्धारित जगह (Location ) पर पूरी टीम के साथ जाते हैं शूटिंग डेट से एक दो दिन पहले ताकि वहाँ शूटिंग से रिलेटेड सब काम पहले से ख़ासकर प्रोपर्टीज को Arrange कर सके।

शूटिंग के दौरान सबसे महत्वपूर्ण भूमिका डायरेक्टर और प्रोडक्शन मैनेजर का होता हैं। क्योंकि यही दोनो सब कुछ डिसाइड करते हैं। डायरेक्टर को जिस भी चीज़ की ज़रूरत होती हैं वो प्रोडक्शन मैनेजर का काम होता हैं पूरा करना।

शूटिंग में सबसे पहले पूरी यूनिट की रहने की व्यवस्था करनी पड़ती हैं। फ़िल्म की कहानी के अनुसार जहाँ भी शूटिंग करने   की प्लानिंग होती हैं उस जगह पर सबसे पहले शूटिंग में काम करने वाले सारे लोगों को रहने की व्यवस्था करनी पड़ती हैं। ये सारी व्यवस्था प्रोड्यूसर के लोग जो प्रोडक्शन मैनेजर होता हैं उनको ही करना पड़ता हैं।

(Accomodation ) रहने की व्यवस्था

इसमें एक्टर्स एक्ट्रेस के लिए ख़ास व्यवस्था करनी होती हैं फ़िर जो टेक्नीशियन होते हैं उनका भी रहने की व्यवस्था करनी होती हैं। ताकि वे लोग समय पर तैयार हो सके और शूटिंग पर दिए हुए समय पर पहुँच सके।

कॉल टाइम ( Call Time)

शूटिंग लाइन में एक वर्ड काफ़ी फ़ेमस हैं कॉल टाइम। इसका मतलब होता हैं शूटिंग स्थल पर पहुँचने का समय। ये डायरेक्शन की टीम समय का निर्धारण करती हैं और प्रोडक्शन के योग यूनिट के सारे लोगों तक कॉल टाइम  पहुँचा देता हैं।

Fooding (खाने की व्यवस्था)

रहने की व्यवस्था के बाद प्रोड्यूसर को पूरी टीम के लिए सुबह शाम का नास्ता और खाने की व्यवस्था करनी होती हैं। जो लोग कैंटीन के होते हैं उनका काम होता हैं कि समय पर पूरी टीम को नास्ता खाना पहुँचा दे ताकि वे लोग तैयार होकर   सेट पर पहुँच सके और शूटिंग समय पर शुरू हो सके।

Transportation ( आने जाने की व्यवस्था)

प्रोड्यूसर के द्वारा पूरी यूनिट के लिए ट्रांसपोर्ट यानी कि गाड़ियों की व्यवस्था रखनी पड़ती हैं जब शूटिंग स्थल डायरेक्टर के द्वारा चेंज किया जाता हैं। या फ़िर किसी भी काम के लिए कही आना जाना होता हैं तो ये सारे काम के लिए व्यवस्था प्रोड्यूसर के द्वारा ही किया जाता हैं।

पेमेंट मोड

जो लोग यूनिट में काम करते हैं उनका पहले ही निर्धारित होता हैं। जिसमें ज़्यादातर चार बार में सारा पेमेंट करना होता हैं। पहला पेमेंट साइनिंग होता हैं। उसके बाद शूटिंग से पहले और फ़िर शूटिंग कंप्लीट होने पर। एक्टर्स के लिए एक क़िस्त उनको डबिंग के समय जो पोस्ट प्रोडक्शन का काम होता हैं उस समय फाइनल पेमेंट किया जाता हैं।

संक्षेप

कुल मिलाकर जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा हैं शूटिंग में प्रोजेक्ट को तैयार यानी कि कमरे में कैद किया जाता हैं। इसमें काफ़ी समय भी लगता हैं। क्योंकि की कभी कभी बार बार एक ही शॉट को रीटेक किया जाता हैं। ये फेज़ सबसे अहम होता हैं । इसके बाद ही पोस्ट प्रोडक्शन का फेज़ शुरू होता हैं। जिसके बारे में हम अगले पोस्ट में जानेंगे।

इस तरह हमने जाना कि किसी भी फ़िल्म या कोई भी प्रोजेक्ट के लिए हमे पहले प्री प्रोडक्शन और फ़िर प्रोडूक्शन और अंत मे पोस्ट प्रोडक्शन का काम किया जाता हैं।

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