सिद्धार्थ गरिमा की फ़िल्म दुकान आजकल काफ़ी चर्चे में हैं फ़िल्म को लेकर आज बॉलीवुड के साथ साथ सोशल मीडिया में भी काफ़ी चर्चाएं हो रही हैं। आइये जानते हैं फ़िल्म दुकान के बारे में पूरे विस्तार से।
फ़िल्म का आईडिया
ये फ़िल्म गुजरात में घटी घटना पर आधारित फ़िल्म हैं ये काफ़ी पहले लगभग एक दशक गुजरात का छोटा सा जगह आनंद पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था। आनद बच्चा फैक्ट्री के नाम से फ़ेमस हो गया था। आनद में सरोगेसी का धंधा इस तरह चल रहा था कि पूरी दुनिया मे फ़ेमस हो गया था।
देश विदेश से लोग यहाँ आते थे सरोगेसी टेक्नीक से माँ बाप बनकर वापस चले जाते थे। इसे सरोगेसी ( किराये का कोख ) कहा जाता हैं। इसी पर आधारित हैं फ़िल्म दुकान। सिद्धार्थ गरिमा पहली बार इस फ़िल्म का डायरेक्शन करने जा रहे हैं। इससे पहले वो रामलीला और टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी फ़िल्म की कहानी लिख चुके हैं। हालांकि अब सेरोगेसी क़ानूनी तौर पर बन्द हो गई हैं।
दुकान की क्या हैं कहानी
फ़िल्म की कहानी शुरू होती हैं जैस्मिन पटेल ( मोनिका पवार) जो कि अपने शर्तो पर जीने वाली लड़की हैं। वो स्कूल के दिनों में अपना नाम चमेली से बदलकर जैस्मिन रख लेती हैं। फ़िल्म जैसमिन से शुरू होती हैं जब वो अपने होनेवाले बच्चे को लेकर भाग जाती हैं।
जब वो जवान होती हैं तो अपने से काफ़ी बड़े उम्र के सुमेर ( सिकंदर खेर) से शादी कर लेती हैं ये जानते हुए भी की सुमरे की बेटी उससे कुछ ही साल की छोटी हैं। बचपन की कुछ हादसों की वजह से जैस्मिन को बच्चे पसंद नही होता हैं।
लेक़िन मज़बूरी में या यूं कहें कि हालात की वजह से और पैसों की ख़ातिर वो सेरोगेसी स्वीकर कर लेती हैं जबकि वो विधवा भी होती हैं। फ़िल्म में ट्विस्ट तब आता हैं जब अपने पेट में पल रहे बच्चे दीया ( मोनाली ठाकुर) और अरमान ( सोहम मजूमदार) के बच्चे को लेकर भाग जाती हैं। क्योंकि अब उसको अपने पेट मे पल रहे बच्चे से लगाव हो जाता हैं।
अब इस बच्चे पर किसका हक़ होगा, जिसने इसे अपने पेट मे पाला हैं यानी जैस्मिन का या फ़िर जिसने इसे किराये पर लिया हैं दिया और अरमान का। ये इस फ़िल्म की मुख्य कहानी हैं। बच्चा किसका होता हैं इसको जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी।
फ़िल्म समीक्षा
इस फ़िल्म में बात करें तो सिद्धार्थ गरिमा ने एक बेहतरीन कलरफुल और म्यूजिकल फ़िल्म बनाई हैं जिसके गाने आपको पसंद आ सकते हैं। पूरी फिल्म में मोनिका पवार ने बहुत ही शानदार काम किया हैं। जामताड़ा के गुड़िया के बाद अब दुकान की जैस्मिन के किरदार में मोनिका पवार ने बेहतरीन काम किया हैं।
इस फ़िल्म का प्रोडक्शन डिज़ाइन, आर्ट डिज़ाइन और म्यूजिक सराहनीय हैं। फ़िल्म का फर्स्ट हाफ़ पूरी तरह कसा हुआ हैं वही सेकंड हाफ़ काफ़ी ढीला नज़र आता हैं।
कुछ चीज़ें जो अटपटा लगता हैं बच्चे होने और काफ़ी समय बीतने पर भी कैरेक्टर खासकर जैस्मिन के हावभाव में कोई बदलाव नही दिखया गया हैं। इसपर भी ध्यान दिया जाना चाहिए था। कुल मिलाकर एक बार आप एंटरटेनमेंट के लिए फ़िल्म को देख सकते हैं।