डायरेक्टर आर बाल्की की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म चुप 23 सितम्बर को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई हैं। फ़िल्म ने काफी अच्छी शुरुआत किया हैं बॉक्स-ऑफिस पे। फ़िल्म ने एडवांस बुकिंग में भी काफ़ी बेहतरीन प्रदर्शन किया हैं। बताया जा रहा हैं कि 125000 टिकिट सेल किया गया था। कल मैं भी गया था देखने काफ़ी भीड़ थी फ़िल्म फुल हाउस चल रही थी। तो आइए इस पोस्ट में रिव्यु करेंगे फ़िल्म चुप का। चुप: मूवी रिव्यु ।
फ़िल्म की स्टोरी
फ़िल्म की स्टोरी बिल्कुल अलग और हट के हैं। फ़िल्म की स्टोरी हैं कि किस तरह एक निर्माता और निर्देशक दिन रात मेहनत करता हैं अपना सबकुछ दाव पे लगाकर फ़िल्म बनाता हैं और कुछ बड़े क्रिटिक्स के नेगेटिव रिव्यु के कारण फिल्में फ़्लॉप हो जाती हैं और फिर डायरेक्टर और फ़िल्म से जुड़े सभी के करियर किस तरह तबाह हो जाता हैं यही इस फ़िल्म की मुख्य कहानी हैं।
फर्स्ट हाफ
फ़िल्म शुरू होती हैं एक पर एक मर्डर से जहाँ साइको किलर ( दुलकर सलमान) एक एक करके क्रिटिक्स का मर्डर करता हैं । न्यूज़ और मीडिया में जब इस मर्डर को हाईलाइट किया जाता हैं तो फिर पुलिस की एंट्री होती हैं । अजय माथुर (सनी देओल) जो कि मुम्बई क्राइम ब्रांच का हेड हैं वो तहक़ीक़ात शुरू करते हैं लेक़िन शुरू में उनको कोई सफलता नही मिलती हैं। इधर दुलकर सलमान जो कि फूल बेचता रहता हैं ऐसी बीच हीरोइन ( श्रेया धन्वंतरि) टूलिप फूल को ढूढते ढूढते वहाँ पहुँचती हैं और उससे फूल खरीदती हैं फिर बार बार मिलते मिलते उसे दुलकर सलमान से प्यार हो जाता हैं।
दूसरी ओर लगातार वीभत्स तरीक़े से मर्डर ज़ारी रहता हैं अन्ततः पुलिस को जब मर्डरर का सुराग नही मिलता हैं तो पूजा भट्ट जो कि इस तरह के साइको किलर स्पेशलिस्ट रहती हैं पुलिस को किलर को ढूढने में मदद करती हैं फिर भी पुलिस को सफलता नही मिलती हैं
सेकेंड हाफ
तब पुलिस यानी कि अजय माथुर एक चाल चलता हैं। हीरोइन और तीन और लोगों को एक फ़िल्म की रिव्यु लिखने को कहता हैं और उनलोगों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करती हैं। हेरोइन जो कि एक क्रिटिक्स रहती हैं लेक़िन वो अभी उस लेबल की नही रहती हैं पुलिस चारों क्रिटिक्स को फ़िल्म डिंग डाँग दिखती हैं और रिव्यु लिखने को कहती हैं। हालांकि फ़िल्म अच्छी रहती हैं फ़िर भी पुलिस सबको अलग अलग स्टार देने को कहती हैं।
श्रेया को पुलिस सिंगल स्टार देने को और नेगेटिव रिव्यु देने को मज़बूर करती हैं हालांकि वो फ़िल्म को 4 स्टार देना चाहती हैं। लेक़िन पुलिस के दबाब में वो एक स्टार देती हैं । उसके बाद साइको किलर जब देखता हैं तो फ़िर वो चौक जाता हैं क्योंकि वो श्रेया से प्यार भी करता हैं। फ़िर भी वो उसको मारने का प्लान करता हैं।
फिर वो श्रेया से मिलने आता हैं क्योंकि श्रेया भी उससे प्यार करती हैं और वो उससे लिपटकर रोने लगती हैं और पुलिस को चकमा देकर किलर श्रेया को खिड़की से बाहर फेंक देता हैं और पुलिस को आंख में धूल झोंककर वहाँ से बाहर आ जाता हैं। फिर श्रेया को एक सुनसान जगह ले जाता हैं और उसको मारने की कोशिश करता हैं लेक़िन अजय माथुर की सतर्कता के कारण वो पकड़ा जाता हैं। ये फ़िल्म की कहानी हैं।
अमिताभ बच्चन एक सीन के लिए
फ़िल्म में स्टोरी से कनेक्ट करते हुए एक सीन में दिखाई देते हैं जहाँ वो एक इंटरव्यू देते हैं जिसमें जबाब देते हुए कहते हैं की बॉक्स-ऑफिस तो ज़रूरी हैं लेक़िन साथ में क्रिटिक्स भी ज़रूरी हैं क्योंकि वो हमारे अच्छाई और कमिया दोनों को बताता हैं। जबतक हमें हमारे कमियों को कोई नही बताता तबतक हम और ज़्यादा बेहतर नही कर सकते हैं।
फ़िल्म ने दिया हैं एक सार्थक संदेश
इस फ़िल्म के माध्यम से निर्देशक आर बाल्की ने बहुत ही बेहतरीन मैसेज़ देने की कोशिश किया हैं कि किस तरह कुछ बड़े क्रिटिक्स के नेगेटिव रिव्यु के कारण सबकुछ बर्बाद हो जाता हैं। इसको गुरूदत्त साहब के लाइफ से काफ़ी अच्छे से कनेक्ट किया गया हैं स्टोरी में। गुरुदत्त साहब की आख़री फ़िल्म कागज़ के फुल को कैसे नेगेटिव रिव्यु के कारण फ़िल्म पिट गयी थी और उसके बाद वो डिप्रेशन में चले गए थे और अन्ततः उनका अंत हो गया था
फ़िल्म के अंत मे दिखया गया हैं कि दुलकर सलमान क्यों किलर बन जाता हैं। उनके पिता डायरेक्टर होते हैं और उनकी फ़िल्म नेगेटिव रिव्यु के कारण फ़्लॉप हो जाती हैं उसके बाद वो अपने बेटे और पत्नी को बार बार मरता हैं इसको देखकर उनका बेटा साइको बन जाता हैं।
निष्कर्ष
फ़िल्म की स्टोरी बहुत ही बेहतरीन हैं साथ ही स्क्रीनप्ले ज़बरदस्त हैं। फ़िल्म में कोई गाना नही हैं लेक़िन गुरुदत्त के फ़िल्म से कुछ कुछ गानों को लिया गया हैं जो फ़िल्म में एक अलग फील देता हैं। फ़िल्म में आपको कही बोरिंग नही फील होगा। फ़िल्म का संपादन उच्च दर्ज़े का हैं।
अगर आप फ़िल्म इंडस्ट्री में कोई भी कम करते हो तो आपको ये फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए। हा जिनलोगों को खून खराबा देखने में दिक्कत होती हैं या फिर बच्चे को इससे दूर रहना चाहिए।
23 सितम्बर को नेशनल सिनेमा डे के कारण फ़िल्म का टिकिट दर काफ़ी कम था उसके कारण भी फ़िल्म फुल हाउस चल रही थी। फ़िल्म का बॉक्स-ऑफिस पे जो भी हो लेक़िन एक बेहतरीन तरह के कंटेंट काफ़ी दिनों बाद देखने को मिला हैं।
कास्ट एंड क्रू
डायरेक्टर – आर बाल्की
एक्टर – सनी देओल, दुलकर सलमान, पूजा भट, श्रेया धन्वंतरि, अमिताभ बच्चन
सिनेमाटोग्राफी- विशाल सिन्हा
संगीत निर्देशक- अमित त्रिवेदी
निर्माता – राकेश झुनझुनवाला, जयंतीलाल गद्दा, अनिल नायडू, गौरी शिंदे
फ़िल्म की लंबाई- 02.15