किसी भी फ़िल्म का केवल पैसा कमा लेने से ये कोई ज़रूरी नही केवल वही फ़िल्म अच्छी हैं और हिट हैं बहुत सारी ऐसी भी फिल्में बनी हैं जो ज़्यादा पैसा नही कमा पाई यहाँ तक कि अपनी लागत भी नही निकाल पाई, उसके बाबाज़ूद भी वो फ़िल्म अपने आप मे एक माइलस्टोन फ़िल्म बनी, आज ऐसी ही एक फ़िल्म की बात करेंगे जिसका नाम हैं ” सुपर बॉयज ऑफ मालेगांव”
ये फ़िल्म बिल्कुल अलग तरह की फ़िल्म हैं जिसमें गॉव के कुछ युवक अपने सपने साकार करने के लिए क्या क्या करते हैं कैसे वो विषम परिस्थितियों में भी हार नही मानते हैं वही इस फ़िल्म में दिखाया गया हैं वैसे तो फ़िल्म सिनेमाघरों में और यू कहे तो बॉक्सऑफिस पर कोई कमाल नही कर पा रही हैं लेक़िन इस फ़िल्म की चर्चा काफ़ी हो रही हैं।
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सुपर बॉयज ऑफ मालेगांव की कहानी
इस फ़िल्म की कहानी शुरू होती हैं महाराष्ट्र के मालेगाँव से जहाँ के कुछ युवा अपनी बेसिक ज़रूरत पूरी करने के लिए पैरोडी फ़िल्म बनाने का प्लान बनाता हूँ इस फ़िल्म की कहानी सत्य घटना पर आधारित हैं होता यूं हैं कि आदर्श गौरव ( नासिर) मालेगांव में एक वीडियो पार्लर चलाता हैं जहाँ वो पायरेटेड फ़िल्म दिखता हैं दर्शकों को और वो अपने पार्लर को चलाते रहने और दर्शकों को आकर्षित करने के लिए फ़िल्म के क्लिप्स को जोड़ जोड़ कर दिखाना शुरू करता हैं कब पुलिस को पता चलता तो पुलिस पायरेटेड फ़िल्म और पायरेसी का हवाला देकर नासिर के वीडियो पार्लर को तोड़ देती हैं
इस घटना के बाद नसीर फ़ैसला करता हैं कि वो खुद अपनी फ़िल्म बनाएगा। नासिर अपने इस जुनून में अपने दोस्तों को भी शामिल करता है, जिसमें फरूख (विनीत सिंह)जो एक लेखक है। शफीक (शशांक अरोड़ा) उसका ऐसा दोस्त है, जो बिहाइंड द कैमरा सारे छोटे-मोटे काम करता है। उसके दो अन्य दोस्त अकरम (अनुज सिंह दुहान) और इरफान (साकिब अयूब) अभिनय और दूसरे काम में उसक साथ देते हैं।
उसके बाद शुरू होता हैं फ़िल्म बनाने का सिलसिला और फिर ये तमाम फिल्में बनाई जाती हैं जिसमें, ‘मालेगांव के शोले’, ‘मालेगांव की शान’, और ‘मालेगांव का सुपरमैन’ जैसी पैरोडी फिल्म बनती है ।जितनी भी फ़िल्मे बनाई जाती हैं सारी फिल्में सुपरहिट साबित होती हैं लेक़िन जब नासिर ओरिजिनल फ़िल्म बनाने की राह पर निकलता हैं तो वो सफ़ल नही हो पाता हैं उसके बाद क्या क्या होता हैं यही फ़िल्म का मुख्य प्लाट हैं ।
सुपर बॉयज ऑफ मालेगांव रिव्यु
इस फ़िल्म को डायरेक्ट किया हैं रीमा कागती और इसके लेखक हैं वरुण ग्रोवर, इस फ़िल्म में आपको 90 के दशक में ले जाया जाता हैं जहाँ हर कोई आपको स्ट्रगल करता दिखेगा,लेक़िन एक बात कॉमन हैं यहाँ हर किसी को फ़िल्म मेकिंग से प्यार हैं यू कहे कि दिवानगी हैं सब अंदर पागलपन हैं अपने सपने को सच करने का।
फ़िल्म का इमोशनल पार्ट आपको वाकई इमोशनल के देगा वही इसके संवाद भी काफ़ी मज़ेदार हैं आपको फ़िल्म में 90 के दशक के माहौल में बनाई गई ये फ़िल्म आपको उस ज़माने के सुपर स्टार अमिताभ और मिथुन की अनायास याद दिला देती हैं हर एक चीज़ चाहे मेकअप, गेटअप, या फ़िर कॉस्ट्यूम हो सबके ऊपर बहुत मेहनत किया गया हैं।
2 घण्टे 11 मिनट की इस फ़िल्म में सचिन जिगरबक संगीत जान डाल देता हैं जबकि बैकग्राउंड म्यूजिक चार चाँद लगा देता हैं वही इस फ़िल्म के हर किरदार अपने आप मे बेमिसाल हैं आदर्श गौरव ( नासिर ) के रूप में अपनी छाप छोड़ी हैं और वाकई वो उसके हक़दार हैं वही शशांक अरोड़ा दोस्त की भूमिका में लाज़बाब हैं जो जिनकी अदाकारी आपको रुला देगी।
राइटर के रूप में विनीत कुमार सिंह ( जिन्होंने छावा में अपनी अदाकारी से सबको मोह लिया हैं ) इस फ़िल्म में भी बेहतरीन काम किया हैं और साबित किया हैं कि वो हर तरह के करैक्टर के लिए फिट हैं। दोस्तों के रोल में अनुज सिंह दुहान और साकिब अयूब जमे हैं, तो महिला पात्रों ने भी दिल जीत लिया हैं । तृप्ति की भूमिका में मंजरी पुपला और नासिर की पत्नी के रोल में मुस्कान का किरदार काफी दमदार लगते हैं वही सहयोगी कास्ट भी काफ़ी दमदार है।
यू कहे तो ये एक बेहतरीन कलाकारों, आर्ट और संगीत से सजी फ़िल्म हैं जो अपने आप मे बिल्कुल अलग हैं अगर आप सिनेमा से प्रेम करते हैं तो इस फ़िल्म को आप देख सकते हैं।
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