भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री आज भी उस मुक़ाम पर क्यों नही पहुँच पाई हैं

ravi

वैसे तो भारत में हर साल अलग अलग भाषाओं की सैकड़ों फिल्में बनती हैं। उसी में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री भी हैं भोजपुरी फ़िल्म देखने वालों की बात करें तो एक बहुत बड़ी तादाद हैं जो शायद किसी रीज़नल फिल्मों का हो। इसके बाद भी आज भोजपुरी का स्तर अभी भी उस मुक़ाम तक क्यों नही पहुँच पाया आज इसी पर बात करेंगे।

वही अगर साउथ इंडस्ट्री की बात करें तो आज बॉलीवुड को टक्कर दे रही हैं। बॉलीवुड वाले उनकी फिल्मों के राइट्स लेकर हिंदी में फ़िल्म बनाते हैं। जबकि ऑडियंस की बात करें तो तमिलनाडु में मात्र 6 से 7 करोड़ की जनसंख्या हैं उसके बाबजूद भी आज तमिल फिल्में कई सौ करोड़ में बनती हैं। लेक़िन भोजपुरी आज भी 40 और 50 लाख की 100 में से 80 फिल्में बनती हैं। आइये जानते हैं क्या हैं कारण

दिशाहीन इंडस्ट्री

भोजपुरी इंडस्ट्री पूरी तरह से दिशाहीन हैं यहाँ जो मेकर्स है। या आते हैं उन्हें पता ही नही होता हैं कि क्या बनना हैं और कैसे बनाना हैं। जहाँ एक ओर अच्छी अच्छी फिल्में बनाई जाती हैं जिसका मक़सद समाज को एक नया रास्ता दिखाना होता हैं। वही भोजपुरी आज भी वही एक ढरे पर चल रही हैं। भोजपुरी की लगभग 90% फिल्मों की कहानी एक जैसी होती हैं।

वही एक हीरो होता होता है  जिसको हीरोइन से  प्यार हो जाता हैं  हीरोइन  भाई और पिता इसका विरोध करते हैं और फ़िर हीरो के साथ उनका लड़ाई होना, बस इससे आगे कुछ बनाया ही नही जाता हैं। आप 2000 से लेकर जबसे भोजपुरी फिर से बनाना शुरू हुई तबसे आजतक कोई भी ऐसी फ़िल्म नही मिलेगी जिसमें कुछ समाज को अच्छा संदेश दिया गया हो।

ये बात सही हैं कि फ़िल्म एंटरटेनमेंट के लिए ज़्यादातर बनाई जाती हैं। लेक़िन फ़िल्म ही एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिये समाज तक अपनी बात पहुचाई जाती हैं। इसलिए एंटरटेन के साथ साथ वैसी फिल्में भी बनाई जानी चाहिए।

नग्नता को ज़्यादा तरज़ीह देना

दूसरा एक सबसे बड़ा कारण हैं कि भोजपुरी फिल्मों में हद से ज़्यादा वल्गरिटी को परोसा जाता हैं बिना वजह  लड़कियों को कम कपड़े डालना, दुआर्थी डॉयलॉग परोसा जाना, ये सबसे बड़ा कारण हैं कि आज कोई भी कुछ नया नही सोचता हैं। बहुत हद तक भोजपुरी दर्शक भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि वो भी इस तरह के कंटेंट मसाला फिल्मों को देखना पसंद करते हैं।

इस इंडस्ट्री की ऑडियंस अच्छे कंटेंट को आज भी डाइजेस्ट नही कर पाते हैं। उनको उसी तरह की चीज़ें पसंद हैं जिसके कारण मेकर्स केवल वैसी ही फिल्में बनाते हैं। हद तो तब होती हैं जब वैसी ही फिल्में चलती हैं जबकि अच्छी फिल्में फ़्लॉप हो जाती हैं। जिसके कारण कोई भी अच्छी फ़िल्म बनाने की नही सोचता हैं।

फ़िल्म मेकिंग की जनकारी की कमी

तीसरा कारण ये हैं कि यहाँ जो मेकर्स हैं ख़ासकर डायरेक्टर्स  उनको फ़िल्म मेकिंग की कोई जानकारी नही होती हैं। हर कोई यहाँ डायरेक्टर बन जाता हैं। ज़्यादातर डायरेक्टर्स ने फ़िल्म मेकिंग के बारे में कुछ भी नही सीखा हैं। लेक़िन वो डायरेक्टर बन जाते हैं। मैं ये नही कह रहा कि यहाँ पढ़े लिखे लोग नही हैं।

लेक़िन फ़िल्म मेकिंग की कोई जानकारी नही होती हैं और न ही वो सीखना चाहते हैं। बस दो चार महीने किसी के साथ काम किया और फिर बन गए डाइरेक्टर।

ग़लत नज़रिया

भोजपुरी का सबसे बड़ा बैक ड्रा हैं यहाँ ज़्यादतर लोग प्रोड्यूसर को बेवकूफ बनाते हैं। उनके अंदर काम करने की भूख नही होती हैं केवल और केवल लोगों को उल्लू बनाना और कैसे भी उनको ( प्रोड्यूसर्स) को  फ़साना होता हैं। एक बार फ़सने के बाद आप फसते ही चले जाते हो। हर डिपार्टमेंट में झोल किया जाता है । ईमानदारी न इंसान के प्रति और न ही काम के प्रति होता हैं। उनको करियर से भी कोई मतलब नही होता हैं।

किसी भी तरह पैसे हाथ में आ जाये उसके बाद वो आपको उल्लू बनता रहेगा। ये हाल डायरेक्टर से लेकर टेकनिसियन सबका यही हाल हैं। मैं इसलिए भी कह रहा हु कि मैंने ख़ुद भी फ़िल्म बनाई हैं । मेरे अनुभव अच्छे नही थे।

नए लोंगो को मौक़ा नही देना

भोजपुरी में केवल सिंगर ही हीरो बनता हैं चाहे वो उस लायक हो या न हो। कोई कितना भी अच्छा फ़िल्म बना ले और हीरो सिंगर नही हैं तो फ़िर उसकी फ़िल्म को जल्दी कोई हाथ नही लगता हैं। नए टैलेन्ट को कभी भी आगे नही आने दिया जाता हैं। ऐसी हालत में कैसे कोई भी इंडस्ट्री ग्रो करेगी।

ऐसे तो बहुत ऐसे कारण हैं जिसके कारण भोजपूरी इंडस्ट्री  आज भी वही के वही खड़ी हैं। लेक़िन ऊपर बताये गए कुछ मुख्य कारण हैं जिसके कारण भोजपुरी बदनाम तो हैं ही और वही की वही हैं। ऐसी कारण से बाहर के लोग इस इंडस्ट्री में ज्यादा दिलचस्पी भी नही रखते हैं।

आपकी क्या राय हैं कमेंट ज़रूर कीजिये, अगर कोई सलाह या सुझाव हो तो।

Share This Article
Leave a comment